कारण[संपादित करें] आघात : अत्यधिक आघात से उत्पन्न व्रण, पिच्चित व्रण, शय्याज व्रण, अवगाढ कुशा से उत्पन्न व्रण तथा विकत पोषण वाले रोगियो के आघातज व्रण ईत्त्यादि अवस्थाओ मे
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एक उग्र व्रण (acute ulcer) और दूसरा जीर्ण व्रण (chronic ulcer) हैं। उग्र व्रण छोटे किंतु गहरे होते हैं, जा श्लैष्मिक कला से मांस स्तर में पहुँच जाते हैं।
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धमनी के रोग, धमनी पर दबाव या उसकी क्षति, विषैली ओषधियों, जैसे अरगट अथवा कारबोलिक अम्ल का प्रभाव, बिछौने के व्रण, जलना, धूल से दूषित व्रण, प्रदाह, संक्रमण, कीटाणु, तंत्रिकाओं
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